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Showing posts from January, 2021

मोदी कार्यकाल में कृषि बज़ट दोगुना, फिर भी किसान संकट में क्यों ?

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  असमय वर्षा और सूखा संकटग्रस्त कृषि क्षेत्र ( सरकारी डेटा जो 60 करोड़ से अधिक भारतीयों ) को असुरक्षित करता है।  ऐसे में देश की रीड़ की हड्डी माने जाने वाले 60 करोड़ किसान असमय वर्षा और सूखा से ग्रसि होकर साहूकारों और बैंको के ऋणों से त्रस्त होकर आत्महत्या की तरफ बढ़ने को मजबूर हो जाते हैं। किसानों के संकट से उपजे बाजार के संकट से आधी आबादी से अधिक ( लगभग 80 करोड़ ) लोग लगातार बढ़ते खर्च से महंगाई की मार से अपने घरों के चरमराते बजट से त्रस्त होकर भूख और गरीबी की मार झेलकर कंगाली की तरफ बड़ने लगते हैं।  देश के किसानों के साथ साथ आम जनता भी बाजार की महंगाई की मार तले दबने लगता है।   बीजेपी नीत मोदी सरकार ने कृषि अर्थवयस्था को मजबूत करने के लिए 57000 करोड़ रुपए का बज़ट (2019-2020) केवल कृषि सेक्टर को जारी किया है। जोकि पिछले पाँच वर्षों के बज़ट के मुकाबले दोगुना है। हालाँकि यह बज़ट  पिछले वर्ष (2018-19) की तुलना में 13.4 %   अधिक है।    कुल बजट में लगभग 13 .4  % वृद्धि के बावजूद भी कृषि संकट नहीं टला  है।  बावजूद इसके किसान सड़कों पर है।   मौजूदा समय में देश का कुल बज़ट  24.4 लाख करोड़ रुपये है। कृ

क्या भारत के प्रदर्शनकारी किसान लोकतंत्र बहाल कर सकते हैं? By Washington post

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  क्या भारत के प्रदर्शनकारी किसान अपना लोकतंत्र बहाल कर सकते हैं?  सोमवार को भारत के गाजियाबाद में दिल्ली-उत्तर प्रदेश सीमा पर हाल ही में पारित किए गए खेत के बिल के विरोध में किसानों ने एक अवरुद्ध राजमार्ग पर एक स्पीकर को सुना।  (डेनिश सिद्दीकी / रायटर) नताशा बहल की राय, 8 दिसंबर, 2020 को सुबह 7:06 बजे जीएमटी + 5: 30 नताशा बहल एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी में एक एसोसिएट प्रोफेसर हैं, जो उदार लोकतंत्रों में असमानताओं के अध्ययन में माहिर हैं। वह "लिंग नागरिकता: डेमोक्रेटिक इंडिया में लिंग हिंसा को समझना" के लेखक हैं। क्या एक वैश्विक महामारी के बीच दिल्ली में मार्च करने वाले किसान भारतीय लोकतंत्र को बहाल कर सकते हैं? 26 नवंबर को, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान के उत्तरी राज्यों के दसियों हज़ारों किसान  दिल्ली आ गए - "दिल्ली चलो" ("दिल्ली जाओ")। शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों को पंजाब-हरियाणा और हरियाणा-दिल्ली सीमाओं पर एक सैन्य पुलिस बल का सामना करना पड़ा। मार्चर्स को आंसू गैस, डंडों और पानी की तोपों से मुलाकात की गई। पुलिस ने किसानों को रोकने

Swaran Singh virk

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Kisan Andolan Updates

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 Kisan Andolan Updates, Singhu Border Tikri Border, 

प्रचंड बहुमत की सरकारें और किसान आंदोलन

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 प्रचंड बहुमत की सरकारें और किसान आंदोलन - 1988 और 2020                                      दो प्रचंड बहुमत की सरकारें और दो किसान आंदोलन ग़ाज़ीपुर धरना स्थल (किसान क्रांति गेट) की सड़कों पे चलते जब बजुर्गों से बात करो तो इस बात का एहसास होता है के ये मोर्चा हमारे लिए नयी बात होगी, उन्होंने तो पहले भी आंदोलन किए हैं और सरकारों को झुकाया है। 32 साल पहले या जैसे वो कहते हैं 32 सर्दियाँ पहले आज़ाद हिन्दोस्तान का सबसे बड़ा किसान संघर्ष उत्तर प्रदेश की सड़कों से चल के दिल्ली के बोट क्लब और उसके लॉन तक पहुँचा था और तब की कोंग्रेस सरकार के घुटने टिकवाए थे। 25 अक्तूबर 1988 में, बी.के .यू. के प्रधान महेन्द्र सिंह टिकै त ने उत्तर प्रदेश के किसानो को दिल्ली चलने की आवाज़ दी थी। पार्लियामेंट का शीतकालीन शुरू होने से कु छ दिन पहले 25 की सुबह सैंकड़ों लोग पहुँचे और देखते ही देखते किसान अपने ट्रैक्टर ट्रॉली, बैल गाड़ी, गाय, भैंस ले दिल्ली के दिल पे जमा होने लगे। लाखों किसान ईस्ट और वेस्ट ब्लॉक और पार्लियामेंट से कु छ दरी ू पर राजपथ की सड़कों पे अपना बसेरा डाल कर बैठ गये। तब 24 घंटे वाले न्यूज़ चैनल

कृषि कानूनों के विरोध में हरियाणा किसान सभा ने रानियां में निकाला ट्रैक्टर मार्च

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  कृषि कानूनों के विरोध में रानियां में निकाला ट्रैक्टर मार्च -कहा, यह मार्च एक रिहर्सल, गणतंत्र दिवस परेड़ में शामिल होंगे लाखों किसान सिरसा। संयुक्त किसान मोर्चे के आह्वान पर कृषि कानूनों के विरोध में बुधवार को रानियां में ट्रैक्टर मार्च निकालकर गुस्सा जाहिर किया गया। इस रोष प्रदर्शन में भारतीय किसान यूनियन(चढूनी) के अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढूनी विशेष रूप से पहुंचे और उन्होंने जमकर सरकार पर निशाना साधा। किसान नेता चढूनी ने कहा कि यह संघर्ष मोदी सरकार के साथ साथ कार्पोरेट घरानों के खिलाफ भी है और जब तक तीन काले कृषि कानून रद्द नहीं होते, संघर्ष जारी रहेगा। किसान का आंदोलन और तेज होगा। हरियाणा किसान सभा के नेता रोशन सुचान, बलराज बणी, प्रीतपाल सिद्धू, डॉ. सुखदेव जम्मू, हरदेव जोश ने बताया कि आज का ट्रैक्टर मार्च सरकार को चेतावनी है कि अगर सरकार ने 25 जनवरी तक काले कानून वापिस नहीं लिए, तो दिल्ली में बेरिकेट्स तोड़कर लाखों की संख्या में किसान ट्रैक्टर पर सवार होकर गणतंत्र दिवस की परेेड में शामिल होंगे। संयुक्त किसान मोर्चा से किसान नेता गुरचरण किलेवाला, सुखदेव सिंह काका, बूटा सिंह थिंद, रणज

Haryana Kisan sabha (AIKS) conducting Tractor raily From Jhoradnali to Bahudin Suchan Toll Plaza

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 Haryana Kisan sabha conducting Tractor raily From Jhoradnali to Bahudin Suchan Toll Plaza