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मोदी की लोकप्रियता में भारी कमी, 64 % इंडो-अमेरिकन लोग मोदी विरोध में।
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केवल 36% भारतीय अमेरिकियों को लगता है कि भारत सही रास्ते पर है भारतीय अमेरिकियों को इस बात से विभाजित किया जाता है कि क्या भारत सही रास्ते पर है, मंगलवार को एक नया सर्वेक्षण दिखाया गया, जिसमें 39 प्रतिशत ने कहा कि यह सही दिशा में नहीं बढ़ रहा है। भारतीय अमेरिकी संयुक्त राज्य में दूसरा सबसे बड़ा आप्रवासी समूह है, और 2019 में ह्यूस्टन, टेक्सास, अमेरिका में होव मोदी रैली के लिए भारी संख्या में निकले [फाइल: डैनियल क्रेमर / रॉयटर्स] 9 फरवरी 2021 संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की रॉक स्टार की तरह की रैलियों में भारी संख्या में निकले भारतीय अमेरिकियों को भारत की अगुवाई वाली दिशा में विभाजित किया गया है, मंगलवार को एक नया सर्वेक्षण दिखाया गया। मोदी की राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी ने अमेरिका और अन्य जगहों पर भारतीय प्रवासियों की उपलब्धियों को बढ़ाया है, उन्हें मेजबान देशों में भारत के हितों को आगे बढ़ाने के लिए एक बड़े समर्थन आधार के रूप में देखा है। लेकिन केवल 36 प्रतिशत भारतीय अमेरिकियों का मानना है कि भारत सही रास्ते पर है, जबकि 39 प्रतिशत को लगता है कि कार्नेगी ए
स्वामीनाथन आयोग कब, क्यों और कैसे ?
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स्वामीनाथन आयोग कब, क्यों और कैसे ? 1990 के दशक के बाद से आत्महत्या करने वाले किसानों की तद्दाद लगतार बढ़ती जा रही थी। बैंकों से लिए गए ऋणों को चुकाने में असमर्थता के कारण ज्यादातर किसान आत्महत्या के लिए मजबूर हो रहे थे। केंद्र और राज्य सरकारों को लगातार होने वाली किसानों की आत्महत्या से कोई सरोकार ही नहीं था। साल 1995 में 10000 से अधिक किसानों ने आत्महत्याऐं की। 1997 से पहले की केंद्र सरकारों को पूर्ण बहुमत नहीं मिल पा रहा था। दूसरी तरफ वामपंथी किसान संगठनों की अगवाई में देश भर में किसान आंदोलन हो रहे थे। मध्य प्रदेश का मुलताई किसान आंदोलन (जनवरी 1998 ) मध्य प्रदेश मुलताई किसान आंदोलन मुलताई गोली कांड बैतूल जिले की मुलताई तहसील में 1998 में ओलावृष्टि और अतिवृष्टि से खराब हुए गेहूं की फसलों पर किसान 5000 रुपए प्रति एकड़ की दर से मुआवजा मांग रहे थे। यहां तीन साल से लगातार न तो कांग्रेस के एजेंडे में मुआवजा दिए जाने की बात थी और न ही दिग्विजयसिंह सरकार ने किसानों की मांग पर कोई गौर किया। इस वजह से प्रदेश में मुलताई ब्लॉक के लगभग 2500 किसानों ने मिलकर आंदोलन की चेतावनी
कौन हैं ग्रेटा थनबर्ग, जो किसान आंदोलन को समर्थन देने के बाद चर्चा में आई ?
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कौन हैं ग्रेटा थनबर्ग, जो किसान आंदोलन को समर्थन देने के बाद अचानक चर्चा में आ गई हैं ? ग्रेटा थनबर्ग का जन्म 3 जनवरी 2003 को स्टॉकहोम , स्वीडन, में हुआ। उनकी माँ मलेना अर्नमैन एक ओपेरा गायिका हैं एवं पिता स्वान्ते थनबर्ग एक अभिनेता हैं। उनके दादा अभिनेता और निर्देशक ओलोफ़ थनबर्ग थे। ग्रेटा थुनबर्ग पर्यावरण और जलवायु संकट का अहम चेहरा बन चुकी हैं। सबसे पहले ग्रेटा ने अपने ही माँ-बाप को ऐसी जीवनशैली अपनाने के लिए मनाया जिससे जलवायु पर कम से कम दुष्प्रभाव पड़ता है। 2018 में जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर लोगों में जागरुकता पैदा करने के लिए ग्रेटा ने स्वीडन की संसद के बाहर विरोध-प्रदर्शन के लिए हर शुक्रवार अपना स्कूल छोड़ा था जिसे देखकर कई देशों में #FridaysForFuture के साथ एक मुहिम शुरू हो गई। शीघ्र ही अन्य छात्र-छात्राओं ने भी अपने-अपने स्कूलों और अड़ोस-पड़ोस में इसी तरह के विरोध प्रदर्शन किए। सबने मिलकर जलवायु के लिए स्कूल बन्दी का एक आन्दोलन ही शुरू कर दिया और उसका नाम 'फ्राइडे फॉर क्लाइमेट' (शुक्रवार, जलवायु के लिए ) रखा। सन २०१८ में जब थुनबर्ग ने संयुक्त राष्ट
मोदी कार्यकाल में कृषि बज़ट दोगुना, फिर भी किसान संकट में क्यों ?
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असमय वर्षा और सूखा संकटग्रस्त कृषि क्षेत्र ( सरकारी डेटा जो 60 करोड़ से अधिक भारतीयों ) को असुरक्षित करता है। ऐसे में देश की रीड़ की हड्डी माने जाने वाले 60 करोड़ किसान असमय वर्षा और सूखा से ग्रसि होकर साहूकारों और बैंको के ऋणों से त्रस्त होकर आत्महत्या की तरफ बढ़ने को मजबूर हो जाते हैं। किसानों के संकट से उपजे बाजार के संकट से आधी आबादी से अधिक ( लगभग 80 करोड़ ) लोग लगातार बढ़ते खर्च से महंगाई की मार से अपने घरों के चरमराते बजट से त्रस्त होकर भूख और गरीबी की मार झेलकर कंगाली की तरफ बड़ने लगते हैं। देश के किसानों के साथ साथ आम जनता भी बाजार की महंगाई की मार तले दबने लगता है। बीजेपी नीत मोदी सरकार ने कृषि अर्थवयस्था को मजबूत करने के लिए 57000 करोड़ रुपए का बज़ट (2019-2020) केवल कृषि सेक्टर को जारी किया है। जोकि पिछले पाँच वर्षों के बज़ट के मुकाबले दोगुना है। हालाँकि यह बज़ट पिछले वर्ष (2018-19) की तुलना में 13.4 % अधिक है। कुल बजट में लगभग 13 .4 % वृद्धि के बावजूद भी कृषि संकट नहीं टला है। बावजूद इसके किसान सड़कों पर है। मौजूदा समय में देश का कुल बज़ट 24.4 लाख करोड़ रुपये है। कृ
क्या भारत के प्रदर्शनकारी किसान लोकतंत्र बहाल कर सकते हैं? By Washington post
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क्या भारत के प्रदर्शनकारी किसान अपना लोकतंत्र बहाल कर सकते हैं? सोमवार को भारत के गाजियाबाद में दिल्ली-उत्तर प्रदेश सीमा पर हाल ही में पारित किए गए खेत के बिल के विरोध में किसानों ने एक अवरुद्ध राजमार्ग पर एक स्पीकर को सुना। (डेनिश सिद्दीकी / रायटर) नताशा बहल की राय, 8 दिसंबर, 2020 को सुबह 7:06 बजे जीएमटी + 5: 30 नताशा बहल एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी में एक एसोसिएट प्रोफेसर हैं, जो उदार लोकतंत्रों में असमानताओं के अध्ययन में माहिर हैं। वह "लिंग नागरिकता: डेमोक्रेटिक इंडिया में लिंग हिंसा को समझना" के लेखक हैं। क्या एक वैश्विक महामारी के बीच दिल्ली में मार्च करने वाले किसान भारतीय लोकतंत्र को बहाल कर सकते हैं? 26 नवंबर को, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान के उत्तरी राज्यों के दसियों हज़ारों किसान दिल्ली आ गए - "दिल्ली चलो" ("दिल्ली जाओ")। शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों को पंजाब-हरियाणा और हरियाणा-दिल्ली सीमाओं पर एक सैन्य पुलिस बल का सामना करना पड़ा। मार्चर्स को आंसू गैस, डंडों और पानी की तोपों से मुलाकात की गई। पुलिस ने किसानों को रोकने