स्वामीनाथन आयोग कब, क्यों और कैसे ?

                स्वामीनाथन आयोग कब, क्यों और कैसे ? 


1990 के दशक के बाद से आत्महत्या करने वाले किसानों की तद्दाद लगतार बढ़ती जा रही थी। बैंकों से लिए गए ऋणों को चुकाने में असमर्थता के कारण ज्यादातर किसान आत्महत्या के लिए मजबूर हो रहे थे। केंद्र और राज्य सरकारों को लगातार होने वाली किसानों की आत्महत्या से कोई सरोकार ही नहीं था। साल 1995 में 10000 से अधिक किसानों ने आत्महत्याऐं की। 

1997 से पहले की केंद्र सरकारों को पूर्ण बहुमत नहीं मिल पा रहा था। दूसरी तरफ वामपंथी किसान संगठनों की अगवाई में  देश भर में किसान आंदोलन हो रहे थे। 

मध्य प्रदेश का मुलताई किसान आंदोलन (जनवरी 1998 ) 

मध्य प्रदेश मुलताई किसान आंदोलन मुलताई गोली कांड

बैतूल जिले की मुलताई तहसील में 1998 में ओलावृष्टि और अतिवृष्टि से खराब हुए गेहूं की फसलों पर किसान 5000 रुपए प्रति एकड़ की दर से मुआवजा मांग रहे थे। यहां तीन साल से लगातार न तो कांग्रेस के एजेंडे में मुआवजा दिए जाने की बात थी और न ही दिग्विजयसिंह सरकार ने किसानों की मांग पर कोई गौर किया। इस वजह से प्रदेश में मुलताई ब्लॉक के लगभग 2500 किसानों ने मिलकर आंदोलन की चेतावनी दी। इस घटना के लगभग दो महीने बाद केंद्र के चुनाव थे। इससे पहले अटल बिहारी की सरकार मात्र 13 दिनों की सरकार बनीं और धराशाही हो गई।   हफ्तेभर से चल रहे इस आंदोलन को लेकर मध्य प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने कोई गंभीरता नहीं दिखाई । लेकिन बीजेपी देश में हो रहे किसी भी चुनावी मुद्दे को भुनाने की फ़िराक में थी। किसानों ने 12 जनवरी 1998 को तहसील मुख्यालय घेरने की चेतावनी दी तो भारी पुलिस बल लगा दिया गया। आसपास के गांवों से किसानों को मुलताई नहीं पहुंचने देने के लिए रास्ते ब्लॉक कर दिए तो विवाद भड़क गया। पथराव शुरू होते ही पुलिस ने फायरिंग शुरू की।

मौतें : मुलताई थाने के रिकॉर्ड अनुसार इस घटना में 22 किसानों की मौत हुई और 150-200 घायल हो गए।

मुलताई गोलीकांड में भी पहले सरकार यह कहकर मुकर गई थी कि पुलिस ने गोली नहीं चलाई है। बाद में स्वीकारना पड़ा कि पुलिस फायरिंग हुई थी और आंदोलन में मौजूद किसानों की मौत हुई थी। तब कांग्रेस सरकार ने आरोप लगाया था कि भाजपा समर्थित राजनीतिक दल किसानों को भड़का रहे हैैं और चारों ओर हिंसा फैला रही है।

 मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने घटना के बाद इसे जलियांवाला बाग कहते हुए तत्कालीन कलेक्टर और एसपी पर केस दर्ज करने की मांग की थी। भाजपा की सरकार आने के बाद उन्हीं अधिकारियों का प्रमोशन हो गया।

घटना के बाद कांग्रेस सरकार ने पीसी अग्रवाल के नेतृत्व में जांच आयोग गठित किया था। इसकी 100 पेज की रिपोर्ट भी आई, लेकिन इस पर भाजपा की सरकार आने के बाद कभी विधानसभा में चर्चा नहीं हुई।

गोलीकांड का कारण : पीसी अग्रवाल के अधीन बनाई गई इस जांच कमेटी की रिपोर्ट में गोलीकांड का कारण संवादहीनता बताई गई। यानी किसानों और प्रशासन के बीचआंदोलन के मुद्दों को लेकर कोई बातचीत नहीं हुई।

मुआवजा : इस मामले में दोषी ठहराए गए डॉ. सुनीलम के अनुसार आंदोलन के बाद देश में पहली बार 4 करोड़ रुपए का फसल बीमा बांटा गया, लेकिन पीड़ित किसानों की जो 5000 रुपए प्रति एकड़ मुआवजे की मांग थी, वह अभी तक किसी को नहीं मिला।

सजा : इस आंदोलन की अगुआई कर रहे डॉ. सुनीलम सहित तीन को किसानों को भड़काने और फायर ब्रिगेड कर्मचारी की मौत के आरोप में आजीवन कारावास की सजा हुई। भाजपा पर आंदोलन भड़काने के आरोप के बावजूद किसी भी बड़े नेता पर केस दर्ज नहीं हुआ।

...और ऐसे हुई थी राजनीति : तब भाजपा का कोई भी राष्ट्रीय स्तर का नेता मुलताई नहीं पहुंचा था। भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा अनशन पर भी बैठे थे।

वहीँ 2004 तक सालाना आत्महत्याओं का आंकड़ा 18241 तक पहुँच गया। 1990 से 2004 तक 2 लाख 74 हज़ार से अधिक किसान आत्महत्या कर चुके थे। किसानों की आत्महत्याओं का आंकड़ा 2004 तक आते आते चरम सीमा पर पहुँच गया था। 

उस समय के समाचार पत्रों की मुख्य सुर्ख़ियों में किसानों की आत्महत्या का मुद्दा ही छाया रहता था

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